परमेश्वर
बाईबल हमें सिखाती है कि परमेश्वर जगत का सृष्टिकर्ता हैं (उत्प.1:1)। सृष्टिकर्ता के रूप में वह सृष्टि के समान नही हैं – अर्थात वह अजन्म, अनादी, एवं अनंत हैं (निर्ग.15:18; व्यवस्था.33:27)। बाईबल यह भी सिखाती है कि परमेश्वर आत्मा है (यूह. 4:24)। किसी ने भी परमेश्वर को कभी नही देखा क्योंकि वह अदृश्य है (कुलु.1:15; 1तिम.1:17)। परमेश्वर सर्वोपस्थित है, (भजन 139:7-10), सर्वसामर्थी हैं (मत्ति 19:26), एवं सर्वज्ञानी है (लूका 12:2)। परमेश्वर एक है, जिससे पहले तो यह तात्पर्य है कि वह अखण्ड है, फिर यह कि उसके तुल्य और कोई दूसरा नही जो ‘परमेश्वर’ नाम से जाना जा सके। एक ही परमेश्वर है (व्यवस्था.4:35)। परमेश्वर जीवन का दाता है (अय्यूब 33:4)। परमेश्वर जगत का शासक एवं न्यायाधीश है, जगत उसी का है (भजन 10:16)। वह मनुष्यों के हर विचार, वचन, एवं कर्मों का आंतिम न्याय के दिन में हिसाब लेगा (2पत.3:7)। बाईबल सभी मनुष्यों को आदेश देती है कि वे परमेश्वर के सम्मुख में अपने आप को भय, भक्ति, पापों से फिराव, एवं आज्ञाकारिता का विश्वास के साथ अपने आप को समर्पित करें (सभो.12:13; प्रेरित.17:30)। बाईबल सिखाती है कि परमेश्वर हमारा पिता है (मत्ति6:9; प्रेरित.17:29) जो हमसे शाश्वत प्रेम करता है (यर्मि. 31:3)। वह नही चाहता है कि हम अपने पापों (उन बुरे विचारों एवं कार्यों के चलते जिसके हम दोषी है) में नाश हो जाए । इसलिए, परमेश्वर ने मानव रूप धारण किया ताकि क्रूस पर हमारे पापदण्ड सह कर उस बलिदान के द्वारा वह हमारे लिए एक उद्धार का मार्ग बनाएं। इसलिए, परमेश्वर ही हमारा एकमात्र उद्धारकर्ता है (यहूदा 1:25)। जो कोई दिल से इस सच्चे परमेश्वर से प्रार्थना करता है, उसकी प्रार्थना तुरन्त सून ली जाती है क्योंकि परमेश्वर की उपस्थिति हर जगह पर है और वह हमारे स्वांस से भी अधिक हमारे करीब है (भजन 34:17; 130:1)। जो कोई उस परमेश्वर से कहता है कि ‘प्रभु, मै अपने पापों के कारण शर्मिंदा हूँ, मुझे माफ कर’, उसके पाप मिटा दिए जाते हैं (भजन 103:12)। यह क्षमा और जीवन में नई शुरुवात प्रभु यीशु मसीह (जो परमेश्वर का स्वरूप है और हमारे उद्धार के लिए आज से 2000 वर्ष पूर्व मानव रूप में प्रगट हुआ) के उस बलिदान के कारण हमे उपलब्ध किया गया जिसके द्वारा उसने पाप और मृत्यु के पुराने जगत का अंत किया और अपने पुनुरुत्थान (मृतकों में से तीसरे दिन जी उठने) के द्वारा हमारे लिए नया जीवन का प्रबन्ध किया।
यीशु मसीह
बाईबल हमें बताती है कि यीशु मसीह परमेश्वर का पुत्र है (यूह.3:16) जिसमें और जिस के द्वारा परमेश्वर हमें प्रगट हुआ (इब्रा.1:1,2)। वह परमेश्वर का वचन है (यूह.1:1), अदृश्य परमेश्वर का स्वरूप है (कुलु.1:15)। वह अजन्म है; उसका नाम ‘पुत्र’ से यह तात्पर्य नही कि उसका जन्म हुआ या वह सृजा गया; वह अनादि और अनंत है, वह परमेश्वर है (यूह.1:1)। परमेश्वर और मनुष्यों के बीच वही एकमात्र मध्यस्त है (1तिम.2:5)। परमेश्वर के विषय में जो कुछ हम जान सकते है वह केवल यीशु मसीह में और यीशु मसीह के द्वारा ही जान सकते हैं, क्योंकि उसमें ईश्वरत्व की परिपूर्णता सदेह वास करती है (कुलु.2:9; इब्रा.1:3)। वह परमेश्वर का तत्व का छाप है और इस जगत का सृष्टिकर्ता एवं पालनहारा है (कुलु.1:16; इब्रा.1:3)। वह परमेश्वर के अलावा दूसरा परमेश्वर नही परन्तु परमेश्वर है और परमेश्वर के साथ एक है (यूह.17:22) जो त्रिएक है। परमेश्वर पिता है, परमेश्वर पुत्र है, और परमेश्वर पवित्रात्मा है। लेकिन परमेश्वर तीन नही है। वह एक है। वे तीन एक है। यह कैसे हो सकता है? इसलिए क्योंकि परमेश्वर सत्य है, परमेश्वर आनंद है, एवं परमेश्वर प्रेम है। सत्य स्वरूप में वह ज्ञाता, ज्ञान का विषय, एवं सर्वज्ञानी आत्मा है। प्रेम के स्वरूप में वह प्रेमी, प्रिय, एवं प्रेम की आत्मा है। आनन्द स्वरूप में वह आनंदित, आनंद का विषय, एवं आनंद की आत्मा है। यीशु का अस्तित्व इब्राहिम से पहले था (यूह.8:58)। यीशु जगत की सृष्टि से पहले था (यूह.1:1,2)। यीशु आनंत है। सब कुछ यीशु के द्वारा और यीशु के लिए ही सृजा गया (कुलु.1:16)। वह परमेश्वर का वारिस है एवं सृष्टि में पहलौठा है (कुलु.1:15)। वह सृष्टि का मुक्तिदाता एवं जगत का उद्धारकर्ता है जिसके निमित वह मनुष्य बन गया (यूह.1:14) ताकि हमारे पापों का दण्ड चुकाये और परमेश्वर की धार्मिकता को पूरा करे (इब्रा.2:9-18)। वह मृतकों मे से जी उठा और नई सृष्टि का कर्ता बन गया ताकि जो कोई उसे विश्वास की आज्ञाकारिता के साथ ग्रहण करेगा वह उसके संग परमेश्वर का राज्य का वारिस ठहराया जाएगा। वह अंतिम दिन में जीवितों और मृतकों का न्याय करने आयेगा (2तिम.4:1)।
पवित्र आत्मा
बाईबल में पवित्र आत्मा का वर्णन कई नामों से किया गया है, जैसे ‘परमेश्वर का आत्मा’ (उत्प.1:2), ‘सत्य का आत्मा’ (यूह.14:17), ‘पवित्र आत्मा‘ (लूका 11:13), ‘पवित्रता की आत्मा’ (रोम.1:4), एवं ‘सहायक’ (यूह.14:26)। पवित्र आत्मा सारे वस्तुओं का सृष्टिकर्ता एवं जीवन का दाता हैं (अय्यूब 33:4; भजन 104:30)। उसी ने पवित्र शास्त्र की लेखन को प्रेरणा दिया (2पत.1:21)। उसी के द्वारा जगत में परमेश्वर के अद्भुत वरदान परमेश्वर के लोगों के द्वारा प्रगट होते हैं (1शम.10:10; प्रेरित 10:38; 1कुरु.12)। वह आत्मिक बातों की समझ देता है (अय्यूब 32:8; यश.11:2)। वह परमेश्वर के दासों को अभिषिक्त करता है और उन्हे सेवकाई के लिए अलग करता है (प्रेरित 10:38; 1यूह.2:27)। वह यीशु मसीह का महान गवाह है जो संसार को पाप, धार्मिकता, एवं न्याय के विषय में निरुत्तर करता है (यूह.15:26; 16:8)। उसी के अंतरनिवास की परिपूर्णता (उससे भरे जाने) के द्वारा शिष्य सारे विश्व में मसीह के गवाह होने की सामर्थ प्राप्त करते हैं (प्रेरित 1:8)।
सृष्टि
बाईबल हमें यह सिखाती है कि परमेश्वर ने जगत एवं सारी वस्तुओं की सृष्टि छ: दिनों में किया (उत्प.1:2; निर्ग.20:11)। जो वस्तुएं आज दृश्यमान है वे अनदेखी बातों से अर्थात शून्य से सृजे गये (इब्र.11:3)। परमेश्वर ने जगत की सृष्टि आवश्यक्ता से नहीं परन्तु अपने ही स्वतंत्र और सार्वभौम इच्छा के अनुसार किया (प्रकाश.4:11)। परमेश्वर ने अंधकार और ज्योति दोनों को बनाया (यश.45:7; उत्प.1:3) – दोनों भौतिक हैं, पहला दूसरे की अनुपस्थिति हैं। परमेश्वर ने अंतर एवं समय की सृष्टि की (भजन 90:2 – ‘तू ने पृथ्वी और जगत की रचना (इब्रा. ख़्यूल – घुमाना, मोड़ना) की’)। परमेश्वर ने जगत की सृष्टि यीशु मसीह के लिए किया जो सारे वस्तुओं का वारिस हैं (कुलु.1:16-18; इफि.1:10)।
स्वर्गदूत
स्वर्गदूत अमर स्वर्गीय प्राणी हैं जिन्हे परमेश्वर ने बनाया (प्रकाश.19:10;22:8-9;कुलु.2:18;लूका 20:34-36)। उन्हे ‘सेवा टहल करनेवाली आत्माएं’ कहा गया है (इब्रा.1:14)। वे अलैंगिक एवं अनेक है (लूका 20:34-35; दानि.7:10; इब्रा.12:22)। स्वर्गदूतों के अलग-अलग प्रकार है। करूब परमेश्वर की वाटिका एवं उपस्थिति में नियूक्त किए गये हैं (उत्प. 3:24; निर्ग.25:22; यहे.28:13,14)। सेराफ (अर्थात ‘जलने वाले’) को हम यशायाह 6:2,3 में परमेश्वर की आराधना करते हुए देख सकते हैं। प्रधान स्वर्गदूत दो हैं, मीकाईल, जो योद्धक दूतों का प्रधान है (यहूदा 1:9; प्रकाश.12:7) एवं जिब्राईल, जो परमेश्वर का संदेशवाहक है (लूका 1:19; दानि.8:16; 9:21)। स्वर्गदूत ‘चुने हुए स्वर्गदूतों’ के नाम से भी जाने जाते हैं क्योंकि उनका स्थान परमेश्वर की उपस्थ्िाति में है (1तिम.5:21)। शैतान, जो अपने पतन के पूर्व अभिषिक्त करूब था, उसके बलवा के समय वे परमेश्वर के प्रति विश्वासयोग्य रहे। स्वर्गदूतों के पास बुद्धि है (2शम.14:17; 1पत.1:12), वे परमेश्वर के आदेशों का पालन करते हैं (भजन 103:20), परमेश्वर के सम्मुख में आदरमय भक्ति के साथ खड़े रहते हैं (नहे.9:6; इब्रा.1:6), वे दीन हैं (2पत.2:11), सामर्थी हैं (भजन 103:20), एवं पवित्र हैं (प्रकाश.14:10)। वे परमेश्वर के सेवक हैं और परमेश्वर की ही आज्ञा के अनुसार कार्य करते हैं (इब्रा.1:14; भजन 103:20)।
दुष्टात्माएं
दुष्टात्माएं वे दूत हैं जिन्होंने उस प्रधान दूत लूसिफर के साथ मिलकर परमेश्वर का विरोध किया था जो शैतान, अर्थात विराधी, पुराना अजगर, परखनेवाला, दुष्ट, संसार का हाकिम, इस संसार का ईश्वर, हत्यारा, एवं झूठों का पिता के नाम से जाना जाता है) (यशा.14/12-15; यह.28:12-19; यूह.12:31; 2कुरू.4:4; मत्ति.4:3; 1यूह.5:19; यूह.8:44)। इस कारण से इन प्रेत आत्माओं के विषय में कहा गया है कि वे वही स्वर्गदूत है जिन्होंने ‘अपने पद को स्थिर न रखा’ (यहूदा 6)। वे गिरे हुए स्वर्गदूत हैं। वे परमेश्वर के कार्य का विरोध करते हैं (1थेस.2:18), लोगों को भरमाते हैं (प्रकाश.20:7-8), घमण्डी हैं (1तिम.3:6), अभक्ति को बढ़ावा देते हैं (इफि.2:2), क्रूर हैं (1पत.5:8), दोषारोपन करते हैं (अय्यूब 2:4), और मनुष्यों को अनेक वेदनाओं एवं बिमारियों से पीडित करते हैं (प्रेरित 10:38; मरकुस 9.25)। वे अविश्वासियों के शरीरों को कबज़ा करते हैं (मत्ति 8:16), किसी व्यक्ति में प्रवेश कर सकते हैं (लूका 22:3), किसी व्यक्ति के विचार को प्रभावित कर सकते हैं (प्रेरित 5:3), एवं जानवरों के शरीरों को भी वश में कर सकते हैं (लूका 8:33)। एक विश्वासी कभी भी दुष्टात्माओं से ग्रसित नही हो सकता हैं क्योंकि उसका शरीर पवित्र आत्मा का मंदिर हैं और उस में दुष्टात्माओं के लिए कोई जगह नही हो सकता (1कुरू.6:19; 10:21)। दुष्टात्माएं भी परमेश्वर पर विश्वास करते हैं और उसके सन्मुख् में भय के साथ थरथराते हैं (याकूब 2:19)। शैतान और उसके दुष्ट दूत परमेश्वर के न्याय के प्रतीक्षा में ही हैं (मत्ति 8:29; प्रकाश. 20:10)। यीशु मसीह के विश्वासियों को पुकारा गया है कि वे परमेश्वर के आधीन हो जाएं और शैतान का सामना करें (याकूब 4:7)। विश्वासियों का एक चिन्ह यह है कि वे दुष्टात्माओं को निकालेंगे (मरकुस 16:17)।
दुष्टात्माओं को निकालना
एक विश्वासी के पास दुष्टात्माओं को निकालने का मसीह द्वारा दिया गया अधिकार है (मत्ति 10:1,8; मरकुस 16:17)। इस अधिकार का स्रोत मसीह यीशु ही है।मसीह ने दुष्टात्माओं को परमेश्वर के आत्मा के द्वारा निकाला (मत्ति 12:28); इसलिए, एक विश्वासी के लिए आवश्यक है कि वह आत्मा से परिपूर्ण चाल चलें (गल.5:25)।प्रार्थना, उपवास एवं परमेश्वर के प्रति संपूर्ण समर्पण अनिवार्य है (मरकुस 9:29; याकूब 4:7)।विश्वासी को आत्माओं की परख के वरदान के लिए प्रार्थना करना चाहिए (1कुरु.12:10)।उसे दुष्टात्माओं के साथ, सामान्यत:, बात नही करना चाहिए (मरकुस 1:24)। वे भरमाने वाली आत्माएं हैं।विश्वासी इन प्रेतात्माओं को यीशु के नाम से निकालें (प्ररित 16:18)।दुष्टात्माओं को निकालते समय अपने आंखों को बंद न रखें; आप आदेश दे रहे हैं, प्रार्थना नही कर रहे; कभी कभी यह पाया गया है कि दुष्टात्माएं आक्रामक हो जाते हैं (मत्ति 17:15; प्रेरित 16:18)।विश्वासी दुष्टात्माओं को यह अनुमति न दें कि वे उसके विश्वास को, जो परमेश्वर, उसके वचन, एवं मसीह के पवित्र आत्मा की सामर्थ पर है, कमज़ोर करें। संदेह शैतान का एक महत्वपूर्ण शस्त्र है (उत्प.3:1; मत्ति 4:3-10)।हर छुटकारे की सेवकाई के दौरान परमेश्वर के सेवकों के मध्य क्रम एवं अनुशासन होना चाहिए; एक अधिकार के साथ सेवा करें और अन्य उसे प्रार्थना के द्वारा समर्थित करें (1कुरू.14:33)।सब प्रकार के ताबीज या जादू टोनें के चीजों को शरीर से दूर करें अन्यथा छुटकारे का कार्य नही होगा। इन चीजों को रखने के द्वारा व्यक्ति शैतानी ताकतों के लिए गढ़ स्थापित करता है (प्ररित 19:19)।छुटकारे पाए हुए व्यक्ति को पापों का अंगीकार, मन फिराव, एवं पवित्र आत्मा की भरपूरी में अगुवाई करें ताकि दुष्टात्माओं के लौटने की गंभीर दशा उत्पन्न न हों (मत्ति 12:44,45)। पवित्रता का जीवन एवं परमेश्वर की इच्छा में बना रहना आदेशित हैं (1यूह. 5:18)।
मनुष्य
परमेश्वर ने मनुष्य को छटवे दिन पुरुष और स्त्री के रूप में अपने ही स्वरूप और समानता में बनाया (उत्प.1:26-28)। वे परमेश्वर का आदर और महिमा को प्रतिबिम्बित करते थे और उनहें सारी सृष्टि पर हुकूमत दिया गया था (भजन 8:5; उत्प.1:28)। परमेश्वर ने मनुष्य को दैहिक, व्यक्तित्व, एवं आत्मिक स्वरूप में बनाया; इस कारण से मनुष्य शरीर, प्राण, एवं आत्मा हैं (उत्प.2:7; अय्यूब 32:8; सभो.11:5;12:7; 1थेस.5:23)। पहला मनुष्य आदम ने पाप किया और इसके द्वारा जगत में पाप और मृत्यु लेकर आया (रोम.5:12)। बाईबल बताती है कि आदम में सभों ने पाप किया, इसलिए मृत्यु हर मनुष्यों पर आ गया (रोम.5:12)। यह मृत्यु तीन रूप में हैं: आत्मिक मृत्यु (परमेश्वर से अलग होना और उसके साथ शत्रुता), शारिरिक मृत्यु (आत्मा का शरीर से अलग होना), एवं दूसरी मृत्यु (नरक में अनंत दण्ड) (इफि.2:1; कुलु.1:21; रोम.5:10; प्रकाश.21:8)। मनुष्य पाप के दण्ड के कारण मरनहार हो गया। बाईबल बताती है कि ‘मांस और लोहू’ अर्थात नया जन्म प्राप्त नही किए मनुष्य स्वर्ग राज्य के वारिस नही हो सकते और न विनाश अविनाशी का अधिकारी हो सकता है (1कुरु.15:50)। इसलिए, उद्धार का एक मात्र मार्ग पवित्रात्मा के द्वारा विश्वास से नया जन्म प्राप्त करना ही है (यूह.3:5,6)। जब कोई यीशु मसीह का प्रभुत्व को स्वीकारता है तब वह पुराने संसार के दोष से मुक्त होकर प्रभु यीशु मसीह के आने वाले राज्य का वारिस हो जाता है। बाकी लोग इस संसार के ईश्वर अर्थात शैतान के आधीन रह जाते हैं (2कुरु.4:4; इफि.2:2; 1युह.5:19)।
उद्धार
सुसमाचार यह घोषणा करता है कि सभी मनुष्य प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास करने के द्वारा अपने पापों से छुटकारा प्राप्त कर सकते हैं। परमेश्वर ने यीशु मसीह को संसार में अपने बलिदान के मेमने के रूप में भेजा ताकि वह संसार के पापों के लिए प्रायश्चित करें (यूह.1:29)। यीशु मसीह का देह बलिदान के लिए पवित्रात्मा के द्वारा अभिषिक्त एवं अलग किया हुआ देह था (लूका 1:35; इब्रा. 10:5)। पवित्रात्मा ने यीशु मसीह के उन दु:खों को जो वह हमारे पापों के प्रायश्चित के लिए सहने वाला था पुराने समय के अपने भविष्यद्वकताओं पर पहले से ही प्रगट कर दिया था (1पत.1:10,11)। मसीह अपने देहधारण एवं प्रायश्चित की मृत्यु के द्वारा मनुष्य एवं परमेश्वर के बीच में मध्यस्त बन गया; इस तरह, अपने शरीर का उस अनंत आत्मा के द्वारा बलिदान करके उसने हमारे लिए परमेश्वर की उपस्थिति में प्रवेश का मार्ग बना दिया (इब्रा.10:19;20)। इस प्रायश्चित की मृत्यु एवं पुनुरुत्थान (मृत्कों में से जी उठने) के द्वारा वह परमेश्वर और मनुष्य के बीच में मेल मिलाप का मार्ग बन गया (रोम.5:10; इब्रा.1:3)। जो इस उद्धार के दान को ठुकरायेंगे वे अपने पापदोष में पड़े रहेंगे और ‘प्रभु के सामने से, और उसकी शक्ति के तेज से दूर होकर अनन्त विनाश का दण्ड पाएंगे’ (2थेस. 1:9)। जो यीशु मसीह को अपने प्रभु और उद्धारकर्ता के रूप में ग्रहण करेंगे वे अंधकार की शक्ति से छुड़ाए जाकर प्रभु यीशु मसीह के राज्य में प्रवेश कराये जाएंगे (कुलु.1:13)। उनहे पुत्र होने एवं यीशु मसीह के संगी वारिस होने का अधिकार दिया गया हैं (यूह.1:12; रोम;8:17)। उद्धार के आशीषें इस प्रकार से हैं:पापों से क्षमा (इफि.1:7) धर्मि ठहराया जाना (रोम.4:25) अनंत जीवन (यूह.3:16) स्वर्ग में नागरिकता (फिलि.3:20) अनंत मिरास (इब्रा.9:15) दुष्टात्माओं और बिमारियों पर अधिकार (लूका 10:19) पवित्रात्मा का फल (गल.5:22,23) एक महिमायुक्त पुनुरुत्थान (1कुरु.15:51-54)
कलीसिया
कलीसिया प्रभु यीशु मसीह के शिष्यों का समुदाय हैं। वह मेमने की पत्नि (प्रकाश्.21:9; इफि.5:25-27; प्रकाश.19:7), मसीह की देह (1कुरु.12:27), एवं परमेश्वर का मंदिर (1पत.2:5,6; इफि.2:21,22; 1कुरु.3:16,17) के रूप में भी जानी जाती है। कलीसिया ‘प्रेरितों और भविष्यद्वक्ताओं की नेव पर जिस के कोने का पत्थर मसीह यीशु आप ही है,’ बनायी गई है (इफि.2:20)। इसलिए, प्ररितों की शिक्षा एवं भविष्द्वाणी के द्वारा आत्मिक उन्नति कलीसिया के लिए बुनियादी हैं (प्रेरित 2:42; 15:32)। कलीसिया संगी विश्वासियों की संगति है। इसलिए, मसीहियों को आदेश दिया गया है कि वे आपस में इकटृठा होना न छोउ़ें (इब्रा.10:25)। कलीसिया परमेश्वर का परिवार हैं; इसलिए, उस में एकता, सहयोग, उन्नति, एवं फलदायकता होना चाहिए (इफि.2:19; 1कुरु.1:10; यूह.13:35; गल.6:1,2)। कलीसिया विश्वक और स्थानीय दोनों है। प्रभु यीशु मसीह कलीसिया की उन्नति के लिए उस में प्ररित, भविष्यद्वक्ता, सुसमाचार प्रचारक, शिक्षक, एवं पासवानों को नियुक्त करते हैं (इफि.4:11-12)। पवित्र आत्मा व्यक्तियों को अपने वरदानों से सुसज्जित करता हैं ताकि कलीसिया की उन्नति हो (1कुरु.12)। कलीसिया को बुलाया गया है कि वह यीशु मसीह के सुसमाचार को हर जाति में प्रचार करें, उनमे से शिष्य बनायें, और यीशु मसीह की शिक्षाओं को उन्हे सिखाएं (मत्ति 28:19-20)। यह प्रचार चिन्हों और अद्भुत कार्यों के साथ होता है जिन्हें प्रभु अपने वचन को प्रमाणित करने के लिए करता है (मरकुस 16:20; इब्रा. 2:4)। कलीसिया के दो नियम हैं जल का बपतिस्मा (मत्ति 28:19) एवं प्रभु का मेज (1कुरु.11:23-29)। यीशु मसीह अपनी कलीसिया के लिए पुन: पृथ्वी पर वापस लौटेगा। तब मसीह में जो मर गए हैं वे पहले जिलाए जाएंगे, फिर जो जीवित हैं वे उसके साथ बादलों में उठा लिए जाएंगे ताकि उसके साथ सदा के लिए रहें (1थेस.4:16,17)।
बाईबल
बाईबल मसीह यीशु के विश्वास द्वारा उद्धार पाने के लिए परमेश्वर द्वारा दिया गया शिक्षण ग्रंथ है (2तिम.3:15)। यह उन पवित्र लोगों के द्वारा लिखी गई थी जो पवित्र आत्मा की भविष्यद्वाणी के अभिषेक के द्वारा चलाये जाते थे (इब्रा.1:1; 2पत.1:20,21)। इसलिए, यह परमेश्वर का प्रेरित वचन के रूप में जाना जाता है (2तिम.3:16)। बाईबल को हम सांसारिक रीति से नही समझ सकते हैं। उद्धार के निमित शिक्षा हमें पवित्र आत्मा के द्वारा प्राप्त होता हैं (1कुरु.2:10-16)। इसलिए, एक अनात्मिक व्यक्ति अत्मिक बातों को न तो समझ सकता है न उनहें ग्रहण कर सकता है। केवल बाईबल ही दैवीय ज्ञान का एकमात्र अभ्रांत (तृटि रहित) स्रोत है जिसे परमेश्वर ने मनुष्यों को दिया है (प्रकाश.22:6)। बाईबल या पवित्र शास्त्र यीशु मसीह के विषय में गवाही देती है (यूह.5:29; गल.3:8); इसलिए, कहा गया है कि ‘यीशु की गवाही भविष्यद्वाणी की आत्मा है’ (प्रकाश. 19:10)। विश्वासी को पवित्र शास्त्रों को पढ़ने और अध्ययन करने के लिए बुलाया गया हैं (भजन 1:2)। बाईबल के वचनों का तोड़ना मरोड़ना या उसमें अन्य बातों को जोड़ना या उसमे से निकालना सख्त रूप से प्रतिबंधित हैं (2पत.3:16; प्रकाश.22:18;19)।
न्याय
बाईबल हमें सिखाती हैं कि सभी नैतिक प्राणी परमेश्वर के न्याय सिंहासन के सामने जगत के अंतिम दिन लाए जाएंगे। यीशु मसीह ने उन चिन्हों के विषय में बताया जो उस अंतिम दिन से पहले होने वाले हैं। वे इस प्रकार हैं: मत त्याग, झूठे भविष्यद्वक्ताओं का बढ़ना , ख्रीस्त विरोधी का आगमन जो परमेश्वर के लोगों को सताएगा और राजनैतिक तौर से विश्व पर नियंत्रण करेगा, युद्ध, भूकम्प, आकाल, बुराई का बढ़ना, पंथों का बढ़ना, एवं अंतरिक्ष में चिन्ह (मत्ति 24)। इसके पश्चात परमेश्वर का पुत्र आसमान में अपने सामर्थी स्वर्गदूतों के साथ प्रगट होगा (2थेस.1:7)। वह इस बार अपने लोगों का उद्धार एवं संसार का न्याय के लिए प्रगट होगा (इब्रा.9:28)। मसीह में जो मर गए हैं वे पहले जिलाए जाएंगे; फिर जो शिष्य जीवित हैं वे प्रभु के साथ हमेशा रहने के लिए उठा लिए जाएंगे (1थेस. 4:16,17)। शैतान और उसके दूत नरक में डाल दिए जाएंगे (मत्ति 25:41; प्रकाश.20:10)। वे जिनका नाम जीवन की पुस्तक (यीशु की पुस्तक) में नही लिखा गया है उन्हें आग की झील मे डाल दिया जायेगा (प्रकाश.20:15) क्योंकि उनका न्याय उन के कार्यों के अनुसार किया जाएगा (रोम.2:5,6; यहूदा 15)। मसीह में विश्वासयोग्य जो रहेंगे वे स्वर्ग राज्य के वारिस होवेंगे (प्रकाश.21:7)।
© Domenic Marbaniang, 2009