सरल शब्दों में प्रार्थना परमेश्वर से एक पिता के रुप में बातें करना ही है। यह एक वार्तालाप है।
प्रार्थना मनुष्य का सबसे महान सौभाग्य है क्योंकि प्रार्थना में वह बिना किसी रोक के सीधे परम प्रधान परमेश्वर से अपने पिता के समान बात कर सकता है जो राजाओं का राजा और प्रभुओं का प्रभु है।
प्रार्थना आत्मिक जीवन का श्वांस है। अर्थात यदी हम प्रार्थना करना छोड देते है तो हम आत्मिक श्वांस लेना छोड देते है, जिसका मतलब यह है कि हमारी आत्मिक जीवन की हानी हो रही है। परन्तु जो पवित्र आत्मा में प्रार्थना करता है उसकी आत्मिक उन्नती होती है (यहूदा 20, 1कुरु 14:4)
हम कभी भी किसी भी वक्त प्रार्थना कर सकते है। सामान्यत: तो हमें निरंतर प्रार्थना करते रहना चाहिए (1थिस्स 5:17)
परन्तु प्रार्थना के कुछ नियम है:
1. हम विश्वास से मांगे।
“पर विश्वास से मांगे, और कुछ सन्देह न करे; क्योंकि सन्देह करनेवाला समुद्र की लहर के समान है जो हवा से बहती और उछलती है” (याकूब 1:6)
“और जो कुछ तुम प्रार्थना में विश्वास से मांगोगे वह सब तुम को मिलेगा” (मत्ति 21:22)
2. हम परमेश्वर की इच्छा की समझ रखकर मांगे। (रोम 8:27)
“और हमें उसके साम्हने जो हियाव होता है, वह यह है; कि यदि हम उस की इच्छा के अनुसार कुछ मांगते हैं, तो हमारी सुनता है” (1यूह 5:14)
“तुम मांगते हो और पाते नहीं, इसलिये कि बुरी इच्छा से मांगते हो, ताकि अपने भोग विलास में उड़ा दो” (याकूब 4:3)
3. हमारा जीवन धर्मी होना चाहिए। अगर ऐसा नही है तो पहले मन फिराएं और अपना रिश्ता परमेश्वर के साथ सही कर लें।
“इसलिये यदि तू अपनी भेंट वेदी पर लाए, और वहां तू स्मरण करे, कि मेरे भाई के मन में मेरी ओर से कुछ विरोध है, तो अपनी भेंट वहीं वेदी के साम्हने छोड़ दे। और जाकर पहिले अपने भाई से मेल मिलाप कर; तब आकर अपनी भेंट चढ़ा” (मत्ति 5:23,24)
“हम जानते हैं कि परमेश्वर पापियों की नहीं सुनता परन्तु यदि कोई परमेश्वर का भक्त हो, और उस की इच्छा पर चलता है, तो वह उस की सुनता है” (यूह 9:31)
“धर्मी जन की प्रार्थना के प्रभाव से बहुत कुछ हो सकता है। (याकूब 5:16)
वैसे ही हे पतियों, तुम भी बुद्धिमानी से पत्नियों के साथ जीवन निर्वाह करो और स्त्री को निर्बल पात्रा जानकर उसका आदर करो, यह समझकर कि हम दोनों जीवन के वरदान के वारिस हैं, जिस से तुम्हारी प्रार्थनाएं रूक न जाएं” (1पत 3:7)
“यदि तुम मुझ में बने रहो, और मेरी बातें तुम में बनी रहें तो जो चाहो मांगो और वह तुम्हारे लिये हो जाएगा” (यूह 15:7)
4. हम पवित्रात्मा में प्रार्थना करें। (यहूदा 20, 1कुरु 14:4)
“इसी रीति से आत्मा भी हमारी दुर्बलता में सहायता करता है, क्योंकि हम नहीं जानते, कि प्रार्थना किस रीति से करना चाहिए; परन्तु आत्मा आप ही ऐसी आहें भर भरकर जो बयान से बाहर है, हमारे लिये बिनती करता है।और मनों का जांचनेवाला जानता है, कि आत्मा की मनसा क्या है? क्योंकि वह पवित्र लोगों के लिये परमेश्वर की इच्छा के अनुसार बिनती करता है” (रोम 8:26-27)
5. हम नम्रता से धन्यवाद और निवेदनों के साथ प्रार्थना करें।
“इसलिये आओ, हम अनुग्रह के सिंहासन के निकट हियाव बान्धकर चलें, कि हम पर दया हो, और वह अनुग्रह पाएं, जो आवश्यकता के समय हमारी सहायता करे” (इब्रा 4:16)।
“वह तो और भी अनुग्रह देता है; इस कारण यह लिखा है, कि परमेश्वर अभिमानियों से विरोध करता है, पर दीनों पर अनुग्रह करता है” (याकूब 4:6)
“किसी भी बात की चिन्ता मत करो: परन्तु हर एक बात में तुम्हारे निवेदन, प्रार्थना और बिनती के द्वारा धन्यवाद के साथ परमेश्वर के सम्मुख अपस्थित किए जाएं” (फिलि 4:6)
“उस ने अपनी देह में रहने के दिनों में ऊंचे शब्द से पुकार पुकारकर, और आंसू बहा बहाकर उस से जो उस को मृत्यु से बचा सकता था, प्रार्थनाएं और बिनती की और भक्ति के कारण उस की सुनी गई” (इब्रा 5:7)
6. हम हर समय और हर जगह प्रार्थना करें।
“हर जगह पुरूष बिना क्रोध और विवाद के पवित्र हाथों को उठाकर प्रार्थना किया करें” (1तिम 2:8)
“निरन्तर प्रार्थना मे लगे रहो” (1थिस्स 5:17)
7. जागते हुए प्रार्थना करें
“इसलिये जागते रहो और हर समय प्रार्थना करते रहो” (लूका 21:36)
8. जब तक न मिले विश्वास के साथ प्रार्थना में लगे रहे।
“क्योंकि जो कोई मांगता है, उसे मिलता है; और जो ढूंढ़ता है, वह पाता है। और जो खटखटाता है, उसके लिये खोला जाएगा” (मत्ति 7:7)
“नित्य प्रार्थना करना और हियाव न छोड़ना चाहिए” (लूका 18:1)
“एलियाह भी तो हमारे समान दुख- सुख भोगी मनुष्य था; और उस ने गिड़गिड़ा कर प्रार्थना की; कि मेंह न बरसे; और साढ़े तीन वर्ष तक भूमि पर मेंह नहीं बरसा। फिर उस ने प्रार्थना की, तो आकाश से वर्षा हुई, और भूमि फलवन्त हुई” (याकूब 5:17-18)
“और उस ने अपने सेवक से कहा, चढ़कर समुद्र की ओर दृष्टि कर देख, तब उस ने चढ़कर देखा और लौटकर कहा, कुछ नहीं दीखता। एलिरयाह ने कहा, फिर सात बार जा। सातवीं बार उस ने कहा, देख समुद्र में से मनुष्य का हाथ सा एक छोटा आदल उठ रहा है। एलिरयाह ने कहा, अहाब के पास जाकर कह, कि रथ जुतवा कर नीचे जा, कहीं ऐसा न हो कि नू वर्षा के कारण रूक जाए” (1 राजा 18:43)
9. यीशु मसीह के नाम से प्रार्थना करें।
“और जो कुछ तुम मेरे नाम से मांगोगे, वही मैं करूंगा कि पुत्र के द्वारा पिता की महिमा हो। यदि तुम मुझ से मेरे नाम से कुछ मांगोगे, तो मैं उसे करूंगा” (यूह 14:13, 14)
किसके लिए प्रार्थना करें
1. अपनी आवश्यकताओं के लिए। (मत्ति 6 :11)
2. अपने आत्मिक अगुवों के लिए। (इब्रा 13:18, 1थिस्स 5:25)
3. सारे पवित्र लोगों के लिए। (इफि 6:18)
4. सरकार और अधिकारियों के लिए। (1तिम 2:1)
5. सुसमाचार प्रचार के लिए। (मत्ति 9:38, कुलु 4:3)
6. बीमारों के लिए। (याकूब 5: 1 4
7. एक दूसरे के लिए। (याकूब 5:16)
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