प्रभु को भेंट देना परमेश्वर की आज्ञानुसार होना चाहिए क्योंकि भेंट देना परमेश्वर ही के द्वारा नियुक्त विधि है।
परमेश्वर तो सारे जगत का मालिक है और सब कुछ उसी का है। वह कहता है, चान्दी तो मेरी है, और सोना भी मेरा ही है (हग्गै 2:8) यह भी लिखा गया है कि परमेश्वर न किसी वस्तु का प्रयोजन रखकर मनुष्यों के हाथों की सेवा लेता है, क्योंकि वह तो आप ही सब को जीवन और स्वास और सब कुछ देता है। (प्रेरित 16:25)
परमेश्वर ने भेंट की वेदी को इसलिए विधित किया ताकि:
(1) हम भेंट के द्वारा परमेश्वर की आराधना करने पाए।
“अपनी संपत्ति के द्वारा और अपनी भूमि की पहिली उपज दे देकर यहोवा की प्रतिष्ठा करना” (नीति 3:9)
“देखो, छूछे हाथ यहोवा के साम्हने कोई न जाए” (व्यवस्था 16:16)
“लेकिन यदी किसी के पास कुछ भी न हो तो वह कम से कम परमेश्वर को ओंठों से धन्यवाद के भेंट दे सकता है” (इब्रा 13:15)
“कयोंकि यदि मन की तैयारी हो तो दान उसके अनुसार ग्रहण भी होता है जो उसके पास है न कि उसके अनुसार जो उसके पास नहीं”(2कुरु 8:12)
“हर एक जन जैसा मन में ठाने वैसा ही दान करेद्ध न कुढ़ कुढ़ के, और न दबाव से, क्योंकि परमेश्वर हर्ष से देनेवाले से प्रेम रखता है” (2कुरु 9:7)
(2) हम भेंट के द्वारा परमेश्वर की सेवा में सहभागी हों।
“क्योंकि इस सेवा के पूरा करने से, न केवल पवित्र लोगों की घटियां पूरी होती हैं, परन्तु लोगों की ओर से परमेश्वर का बहुत धन्यवाद होता है। क्योंकि इस सेवा से प्रमाण लेकर परमेश्वर की महिमा प्रगट करते हैं, कि तुम मसीह के सुसमाचार को मान कर उसके आधीन रहते हो, और उन की, और सब की सहायता करने में उदारता प्रगट करते रहते हो। ओर वे तुम्हारे लिये प्रार्थना करते हैं; और इसलिये कि तुम पर परमेश्वर का बड़ा ही अनुग्रह है, तुम्हारी लालसा करते रहते हैं” (2कुरु 9:12-14)
परमेश्वर हम क्या देते है उस पर ध्यान देता है (इब्रा 11: 4, मलाकी 1:6-8) यीशु मसीह ने उस विध्वा की प्रशंसा की जिसने केवल दो दमड़ियां दिया था, पर उसने अपना सब कुछ दे दिया था।
“इतने में एक कंगाल विधवा ने आकर दो दमड़ियां, जो एक अधेले के बराबर होती है, डाली। तब उस ने अपने चेलों को पास बुलाकर उन से कहा; मैं तुम से सच कहता हूं, कि मन्दिर के भण्डार में डालने वालों में से इस कंगाल विधवा ने सब से बढ़कर डाला है। क्योंकि सब ने अपने धन की बढ़ती में से डाला है, परन्तु इस ने अपनी घटी में से जो कुछ उसका था, अर्थात् अपनी सारी जीविका डाल दी है” (मरकुस 12:42-44)
हमारें भेंट परमेश्वर के सन्मुख में स्मरण के लिए पहुंचते है (प्रेरित 10: 4)
कैसे दें
1. देने के विषय में यह स्पष्ट लिखा गया है कि हम जो हमारे पास है उसके अनुसार ही दें (2कुरु 8:12) अर्थात, चोरी का या उधार का भेंट परमेश्वर के सन्मुख में घृणित है।
2. फिर आवश्यक है कि हम हर्ष से दें।
“हर एक जन जैसा मन में ठाने वैसा ही दान करेद्ध न कुढ़ कुढ़ के, और न दबाव से, क्योंकि परमेश्वर हर्ष से देनेवाले से प्रेम रखता है” (2कुरु 9:7)
3. विश्वास से दें।
“विश्वास ही से हाबिल ने कैन से उत्तम बलिदान परमेश्वर के लिये चढ़ाया; और उसी के द्वारा उसके धर्मी होने की गवाही भी दी गई: क्योंकि परमेश्वर ने उस की भेंटों के विषय में गवाही दी; और उसी के द्वारा वह मरने पर भी अब तक बातें करता है” (इब्रा 11:4)
“और विश्वास बिना उसे प्रसन्न करना अनहोना है, क्योंकि परमेश्वर के पास आनेवाले को विश्वास करना चाहिए, कि वह है; और अपने खोजनेवालों को प्रतिफल देता है” (इब्रा 11:6)
4 विश्वासयोग्यता से दें।
यीशु मसीह ने कहा कि जो सरकार का है वह हम सरकार को दें और जो परमेश्वर का है वह हम परमेश्वर को दें (लुका 20:25) अर्थात दसवांश और अन्य भेंटों को मिश्रित न करें। जो बात प्रभु ने मन में डाला है और हमने ठाना है उससे मुकर न जाएं।
5 उदारता से दें।
इसलिये मैं ने भाइयों से यह बिनती करना अवश्य समझा कि वे पहिले से तुम्हारे पास जाएं, और तुम्हारी उदारता का फल जिस के विषय में पहिले से वचन दिया गया था, तैयार कर रखें, कि यह दबाव से नहीं परन्तु उदारता के फल की नाई तैयार हो।। परन्तु बात तो यह है, कि जो थोड़ा बोता है वह थोड़ा काटेगा भी; और जो बहुत बोता है, वह बहुत काटेगा। (2कुरु 9:5-6)
“दिया करो, तो तुम्हें भी दिया जाएगा: लोग पूरा नाम दबा दबाकर और हिला हिलाकर और उभरता हुआ तुम्हारी गोद में डालेंगे, क्योंकि जिस नाम से तुम नापते हो, उसी से तुम्हारे लिये भी नापा जाएगा” (लूका 6:38)
0 comments:
Post a Comment