मनुष्‍य



परमेश्‍वर ने मनुष्‍य को छटवे दिन पुरुष और स्‍त्री के रूप में अपने ही स्‍वरूप और समानता में बनाया (उत्‍प.1:26-28) वे परमेश्‍वर का आदर और महिमा को प्रतिबिम्बित करते थे और उनहें सारी सृष्टि पर हुकूमत दिया गया था (भजन 8:5; उत्‍प.1:28) परमेश्‍वर ने मनुष्‍य को दैहिक, व्‍यक्तित्‍व, एवं आत्मिक स्‍वरूप में बनाया; इस कारण से मनुष्‍य शरीर, प्राण, एवं आत्‍मा हैं (उत्‍प.2:7; अय्यूब 32:8; सभो.11:5;12:7; 1थिस्‍स.5:23) पहला मनुष्‍य आदम ने पाप किया और इसके द्वारा जगत में पाप और मृत्‍यु लेकर आया (रोम.5:12) बाईबल बताती है कि आदम में सभों ने पाप किया, इसलिए मृत्‍यु हर मनुष्‍यों पर आ गया (रोम.5:12) यह मृत्‍यु तीन रूप में हैं: आत्मिक मृत्‍यु (परमेश्‍वर से अलग होना और उसके साथ शत्रुता), शारिरिक मृत्‍यु (आत्‍मा का शरीर से अलग होना), एवं दूसरी मृत्‍यु (नरक में अनंत दण्‍ड) (इफि.2:1; कुलु.1:21; रोम.5:10; प्रकाश.21:8) मनुष्‍य पाप के दण्‍ड के कारण मरनहार हो गया।
बाईबल बताती है कि मांस और लोहूअर्थात नया जन्‍म प्राप्‍त नही किए मनुष्‍य स्‍वर्ग राज्‍य के वारिस नही हो सकते और न विनाश अविनाशी का अधिकारी हो सकता है (1कुरु.15:50) इसलिए, उद्धार का एक मात्र मार्ग पवित्रात्‍मा के द्वारा विश्‍वास से नया जन्‍म प्राप्‍त करना ही है (यूह.3:5,6) जब कोई यीशु मसीह का प्रभुत्‍व को स्‍वीकारता है तब वह पुराने संसार के दोष से मुक्‍त होकर प्रभु यीशु मसीह के आने वाले राज्‍य का वारिस हो जाता है। बाकी लोग इस संसार के ईश्‍वर अर्थात शैतान के आधीन रह जाते हैं (2कुरु.4:4; इफि.2:2; 1युह.5:19)

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