कलीसिया प्रभु यीशु मसीह के शिष्यों का समुदाय हैं। वह मेमने की पत्नि (प्रकाश्.21:9; इफि.5:25-27; प्रकाश.19:7), मसीह की देह (1कुरु.12:27), एवं परमेश्वर का मंदिर (1पत.2:5,6; इफि.2:21,22; 1कुरु.3:16,17) के रूप में भी जानी जाती है। कलीसिया “प्रेरितों और भविष्यद्वक्ताओं की नेव पर जिस के कोने का पत्थर मसीह यीशु आप ही है,” बनायी गई है (इफि.2:20) इसलिए, प्ररितों की शिक्षा एवं भविष्द्वाणी के द्वारा आत्मिक उन्नति कलीसिया के लिए बुनियादी हैं (प्रेरित 2:42; 15:32) कलीसिया संगी विश्वासियों की संगति है। इसलिए, मसीहियों को आदेश दिया गया है कि वे आपस में इकट्ठा होना न छोडें (इब्रा.10:25) कलीसिया परमेश्वर का परिवार हैं; इसलिए, उस में एकता, सहयोग, उन्नति, एवं फलदायकता होना चाहिए (इफि.2:19; 1कुरु.1:10; यूह.13:35; गल.6:1,2) कलीसिया विश्वक और स्थानीय दोनों है।
प्रभु यीशु मसीह कलीसिया की उन्नति के लिए उस में प्ररित, भविष्यद्वक्ता, सुसमाचार प्रचारक, शिक्षक, एवं पासवानों को नियुक्त करते हैं (इफि.4:11-12) पवित्र आत्मा व्यक्तियों को अपने वरदानों से सुसज्जित करता हैं ताकि कलीसिया की उन्नति हो (1कुरु.12) कलीसिया को बुलाया गया है कि वह यीशु मसीह के सुसमाचार को हर जाति में प्रचार करें, उनमे से शिष्य बनायें, और यीशु मसीह की शिक्षाओं को उन्हे सिखाएं (मत्ति 28:19-20) यह प्रचार चिन्हों और अद्भुत कार्यों के साथ होता है जिन्हें प्रभु अपने वचन को प्रमाणित करने के लिए करता है (मरकुस 16:20; इब्रा. 2:4)
कलीसिया के दो नियम हैं जल का बपतिस्मा (मत्ति 28:19) एवं प्रभु का मेज (1कुरु.11:23-29)
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