बाइबिलशास्त्र

1. प्रकाशन
प्रकाशन का अर्थ है पर्दा हटाना, सत्य को प्रगट करना, एवं रहस्योद्धाटन।
सामान्य प्रकाशनः Psa. 19:1-3; Act. 14:15-17; Rom. 1:18-20.
विशेष प्रकाशनः परमेश्वर की उद्धार योजना से संबंधित। यह व्यक्तिगत एवं वाचिक दोनों ही हैं।

बाइबिलः लिखित वचन। सम्पूर्ण ऐतिहासिक जानकारी ;वंशावली, वाचाएं, व्यवस्था, घटनाएं), साहित्य (गद्य एवं काव्य), भविष्यद्वाणी, व्याख्या (उदाहरणः पत्रियाएं), जो परमेश्वर का उद्धार संबंधित योजना की समझ हेतु हमारे लिए आवश्यक है।

स्वप्न, दर्शन, भविष्यकथनों को लिखित वचन से तालमेल बनाए रखना चाहिए (Gal. 1:8-9).

प्रभु यीशु मसीहः परमेश्वर के प्रकाशन की परिपूर्णता (Heb. 1:2-3)

प्रबोधन या प्रदीप्तिः मनुष्य के आत्मा में पवित्रात्मा के द्वारा रेमा (rhema) का प्रकाशन, जिसके द्वारा मनुष्य सत्य की समझ प्राप्त कर पवित्रात्मा के विश्वास के वरदान के द्वारा उसका प्रतियुत्तर देता है। यह प्रकाशन का आत्मगत पहलु है। यह प्रबोधन सम्पूर्ण लिखित वचन एवं मसीह में प्रकाशन की परिपूर्णता से तालमेल रखता है (Joh. 14:26; Joh. 16:15). अनिवार्य (1Co. 2:11).

2. लेखन का उद्देश्य (Woodrow Kroll)
अ. परिशुद्धता हेतुः बाइबिल मे परमेश्वर के प्रकाशन बयानों का दर्ज परिशुद्ध रूप मे किया गया है।
आ. प्रसारन हेतुः लिखित वचन संदेश को फैलाता है।
इ. परिरक्षण हेतुः शब्दों को लिखित रूप में परिरक्षित किया गया है।

3. बाइबिल की विश्वसनीयता
अ. ऐतिहासिक सत्यता
आ. भविष्यकथनों की सटीकता
इ. अभिलेखों की प्रामाणिकता
ई. व्यावहारिक - यह प्रयोजनकार हैं
उ. वैज्ञानिक परिशुद्धता
ऊ. दार्शनिक सुसंगतता

4. प्रेरणा
प्रेरणा के विषय अलग-अलग सिद्धांत
1. यांत्रिक या श्रुतलेखनः परमेश्वर के प्रकाशन के प्रसारण में लेखक मात्र एक निष्क्रिय यंत्र है। मानवीय तृटियों से सुरक्षित रखने के लिये उसके व्यक्तित्व को बर्खास्त कर दिया जाता है।
2. आंशिक प्रेरणाः केवल वे ही सिद्धांत प्रेरणाधारित है जिनसे मानव लेखक अनभिज्ञ थे। परमेश्वर ने विचारों को प्रगट किया जिनहें लेखकों ने अपने अपने शब्दों में लिखा।
3. प्रेरणा की श्रेणियां:  कुछ बाइबिल के भाग अन्य भागों से अधिक और अलग रूप में प्रेरित हैं।
4. अंतज्र्ञान या स्वाभाविक प्रेरणाः असाधारण अन्तदृष्टि रखने वाले प्रतिभाशाली व्यक्तित्वों को परमेश्वर ने बाइबिल लिखने के लिए चुना। प्रेरणा कोई कलात्मक क्षमता या प्राकृतिक वरदान के समान ही है।
5. प्रदीप्ति या रहस्यात्मक प्रेरणाः लेखक परमेश्वर द्वारा शास्त्रों को लिखने के लिए सक्षम बनाए गए थे। पवित्रात्मा ने उनके सामान्य शक्तियों को बढ़ा दिया।
6. शाब्दिक एवं पूर्ण प्रेरणाः शास्त्रों के निर्माण में ईश्वरीय एवं मानव तत्व दोनों उपस्थित थे। सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र, हर वचन सहित, परमेश्वर के मन का उत्पादन है जो मानव शब्द एवं समझ अनुरूप अभिव्यक्त किया गया है।

2Ti. 3:16 (Theopneustos): परमेश्वर के सांस से दिया गया
प्रेरणा न ता यांत्रिक है न तो श्रुतलिखित परन्तु वह जैव है, अर्थात इसमें लेखकों का व्यक्तित्व उपस्थित था। वे आत्मा के चलाए गए थे (Phero) (2Pe. 1:21)

प्रेरणा शाब्दिक है; वह शब्दों तक वितृत है, केवल विचारों तक सीमित नही।
प्रेरणा सम्पूर्ण है; अर्थात, परिपूर्ण हर एक पवित्रशास्त्र...समान रूप मे।

भ्रमातीतत्वः यह सत्यापन एवं अन्यथाकरण के लिये खुला है और प्रकाशित सत्य के संचार में पूर्णतः परिपूर्ण हैं।

निभ्र्रान्तताः इसमें कोई भी भ्रान्तियां नहीं हैं। संपूर्ण निभ्र्रान्तताः बाइबिल अपने शिक्षाओं एवं बयानों में पूर्णतः सत्य है।

अन्य विचारधाराएं
सीमित निभ्र्रान्तताः यह केवल उद्धार संबंधित वाक्यों में निभ्र्रान्त है।
सोद्देश्यरूपी निभ्र्रान्तताः परमेश्वर के साथ मनुष्यों का मेल कराने का उद्देश्य में वह अचूक हैं।
अप्रासंगिकः यह सिद्धांत अप्रासंगिक है। बाइबिल के उद्देश्य को ध्यान में रखने की आवश्यक्ता है।

7. बाइबिल शाश्वत एवं परिपूर्ण है।

8. कैननः शाब्दिक अर्थः नापने वाली छडी, मापदण्ड। कैननीयता, कैननीय, कैननीकरन
यह शब्द इब्रानी एवं युनानी भाषा से आयी है और इसका अर्थ है सरकण्डा या बेंत, अर्थात ऐसे कोई वस्तु जो सीधा हो, या सीधा रखे जाने वाली वस्तु। अतः इसका तात्पर्य हो जाता हैः मापदण्ड, या वह जिसे मापा या नापा गया हो। इसे शास्त्रों के लिए उपयोग में इसलिए लाया गया क्योंकि यह जताया जाएं कि इन्हीं में विश्वास और व्यवहार एवं सिद्धांत और कर्तव्य के निमित्त अधिकृत मापदण्ड है।
पाँच मापदण्डः
1. ग्रान्थकारिता - क्या यह भविष्यद्वक्ता, प्रेरित, अथवा पवित्र जन के द्वारा लिखा गया हैं?
2. स्थानीय कलीसिया द्वारा स्वीकृति
3. कलीसिया के प्रवर्तकों द्वारा पहचान
4. विषय वस्तु सैद्धांतिक रूप में सही हो
5. व्यक्तिगत आत्मिक उन्न्ाति के लिये लाभदायक हो।

पुराना नियम का कैनन या पुस्तक संग्राह मसीह एवं प्रेरितों द्वारा स्वीकृत रूप में स्वीकार किया गया है।
नया नियम का कैनन या पुस्तक संग्राह प्रेरिताई ग्रान्थकारिता एवं कलीसिया के प्रवर्तकों के द्वारा उनकी स्वीकृति के आधार पर स्वीकार किया गया है।
कारथैज़ के तृतीय परिषद (397 ईस्वी) में 27 नये नियम के पुस्तकों को कैननीय घोषित किया गया। संत अथनैशियस (297-373 ईस्वी) ने अपने 39 वे पास्कल पत्र (367 ईस्वी) में नये नियम के पुस्तकों को जिस रूप में आज हम उन्हें जानतें हैं उस रूप में सूचीबद्ध किया।

9. बाइबिल में उसके विषय में प्रयोग किये गए प्रतीक
1. तलवार (Heb. 4:12)  2. हथौड़ा (Jer. 23:29)  3. बीज (1Pe. 1:23) 4. दर्पण (Jam. 1:23-25)  5. आग (Jer. 23:29, Jer. 20:9) 6. दीपक (Psa. 119:105)  7. भोजन (1Pe. 2:2) 8. जल (Eph. 5:25-27)  9. दूध (1Pe. 2:2)  10. मांस (Heb. 5:12) 11. रोटी (Mat. 4:4) 12. चांदी (Psa. 12:6)

10. अन्य नाम
यहोवा की पुस्तक (Isa. 34:16); सत्य की पुस्तक (Dan. 10:21); शास्त्र (Joh. 10:35, Mat. 21:42); पवित्रशास्त्र (Rom. 1:2); पवित्र पुस्तकें (Dan. 9:2; Heb. 10:7); परमेश्वर के वचन (Rom. 3:2), परमेश्वर का वचन (Heb. 4:12); परमेश्वर के जीवित वचन (Act. 7:38)

11. बाइबिल का प्रभावः हमारे विचार, जीवन, मूल्य, एवं नियति पर।

12. बाइबिल का अधिकारः मानव बुद्धि पर, कलीसिया पर, हमारे अनुभव पर, एवं हर मसीही पर।

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